
आर पी डब्लू न्यूज़/ब्यूरो रिपोर्ट
नई दिल्ली 6 जनवरी :-भारत की G20 अध्यक्षता में शेरपा ट्रैक के अंतर्गत शिक्षा कार्य समूह (ईडीडब्ल्यूजी) में शिक्षा और मूलभूत साक्षरता पर विशेष फोकस किया जाना है। दुनियाभर में मूलभूत साक्षरता के स्तर में भारी असमानता के कारण सभी तक मूलभूत और समग्र शिक्षा के लक्ष्य में रुकावट आई है और कोरोना महामारी तथा वैश्विक आर्थिक सुस्ती की वजह से इसमें और अधिक गिरावट देखने को मिली है, विशेष रूप से अल्पविकसित और विकासशील देशों पर इसका ज्यादा बुरा असर पड़ा है।वर्तमान में G20 की अध्यक्षता करते हुए भारत के पास इस महत्वपूर्ण वैश्विक चुनौती से लड़ने का अवसर है। दुनिया को इस समस्या से बाहर निकालने के लिए G20 समूह की भूमिका ऐसे समय में और अधिक बढ़ जाती है।
क्या है मूलभूत साक्षरता?
मूलभूत साक्षरता को मोटे तौर पर एक बच्चे की बुनियादी पाठ पढ़ने और आधारभूत गणित के सवालों (जैसे- जोड़ और घटाव) को हल करने की उसकी क्षमता के रूप में संकल्पित किया गया है। मूलभूत साक्षरता के पक्ष में यह तर्क दिया जाता है कि पढ़ने-लिखने और संख्याओं के साथ बुनियादी क्रियाएँ कर सकने की क्षमता भविष्य की सभी स्कूली शिक्षा और आजीवन सीखने हेतु एक आवश्यक आधार तथा अनिवार्य शर्त है।‘ग्रेड 3 स्तर पर बच्चों के लिये फाउंडेशनल लर्निंग स्टडी’ विभिन्न भाषाओं में समझ विकसित करने के साथ पढ़ सकने की उनकी क्षमता के लिये मानक स्थापित स्थापित करने में सक्षम होगी। यह एक निश्चित गति, सटीकता और समझ के साथ आयु-उपयुक्त पाठ (ज्ञात और अज्ञात पाठ दोनों) पढ़ सकने की क्षमता के साथ-साथ मूलभूत संख्यात्मक कौशल का आकलन करेगा।
क्या है दुनिया में मूलभूत साक्षरता का हाल ?
विश्व बैंक के अनुसार हाल के वर्षों में, यह स्पष्ट हो गया है कि दुनिया भर में कई बच्चे कुशलता से पढ़ना नहीं सीख रहे हैं। भले ही अधिकांश बच्चे स्कूल में हैं, लेकिन एक बड़ा हिस्सा मौलिक कौशल हासिल नहीं कर रहा है। इसके अलावा, 260 मिलियन बच्चे स्कूल भी नहीं जाते हैं। यह एक सीखने के संकट का अग्रणी किनारा है जो मानव पूंजी के निर्माण और सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने के देशों के प्रयासों को खतरे में डालता है।विश्व बैंक और यूनेस्को के सांख्यिकी संस्थान द्वारा संयुक्त रूप से विकसित एक उपाय का उपयोग करते हुए यह निर्धारित किया गया है कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में 53 प्रतिशत बच्चे प्राथमिक विद्यालय के अंत तक एक साधारण कहानी को पढ़ और समझ नहीं सकते हैं। गरीब देशों में यह स्तर 80 प्रतिशत तक है। निरक्षरता का ऐसा उच्च स्तर एक प्रारंभिक चेतावनी का संकेत है कि सभी वैश्विक शैक्षिक लक्ष्य और अन्य संबंधित सतत विकास लक्ष्य खतरे में हैं।एसडीजी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए सीखने की गरीबी को कम करने में प्रगति बहुत धीमी है: सुधार की वर्तमान दर पर, 2030 में लगभग 43% बच्चे अभी भी सीखने में गरीब होंगे। भले ही देश इस शताब्दी में अब तक की सबसे तेज दर से अपनी सीखने की गरीबी को कम करते हैं, लेकिन इसे समाप्त करने का लक्ष्य 2030 तक प्राप्त नहीं किया जा सकेगा।

G20 के लक्ष्य पाने में मार्गदर्शक नई शिक्षा नीति
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 ‘तत्काल राष्ट्रीय मिशन’ के रूप में सभी बच्चों के लिये मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता (FLN) की प्राप्ति को प्राथमिकता देती है। शिक्षा मंत्रालय के ‘बेहतर समझ और संख्यात्मक ज्ञान के साथ पढ़ाई में प्रवीणता हेतु राष्ट्रीय पहल- निपुण’ (National Initiative for Proficiency in Reading with Understanding and Numeracy- NIPUN) भारत मिशन 2011 में इसी प्रकार के दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं।पढ़ने की प्रवीणता या अंकगणितीय कौशल अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। हालाँकि सीखने या लर्निंग को केवल खंडों या अंतराल में पढ़ना तथा अंकगणितीय कौशल की महारत के रूप में चित्रों के द्वारा देनकर सीखना अन्य समग्र घटकों की अनदेखी और कल्पना शक्ति की कमी को प्रकट करेगा।सभी तक पहुंच,समानता, गुणवत्ता, सामर्थ्य और जवाबदेही के मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति आजीवन सीखने के अवसरों को बढ़ावा देने और जी 20 एजुकेशन वर्किंग ग्रुप के साझा दृष्टिकोण को प्राप्त करने के लिए भारत की मार्गदर्शक है।भारत बचपन की देखभाल और प्रारंभिक शिक्षा को औपचारिक रूप देने, विकलांग बच्चों का समर्थन करने, डिजिटल और मल्टी-मॉडल सीखने को बढ़ावा देने, लचीले प्रवेश-निकास मार्ग, कौशल के साथ शिक्षा को एकीकृत करने पर विशेष जोर दे रहा है, जो सीखने के परिणामों में सुधार का जरिया बनी है। भारत अपनी इस महत्वाकांक्षी परियोजना के माध्यम से दूसरे सदस्य देशों के साथ मिलकर इस समस्या के समाधान हेतु कार्य करेगा।
मूलभूत शिक्षा के लिए सरकारी नीतियाँ और योजना
भारत सरकार साक्षरता के महत्व को समझते हुए देश भर में मूलभूत साक्षरता के लक्ष्य के साथ कई कल्याणकारी योजनाएं संचालित कर रहीं हैं।कोरोना महामारी के कारण देश में स्कूल पढ़ने वाले बच्चों की शिक्षा में काफी ज्यादा असर पड़ा। स्कूल और कॉलेज बंद हो जाने के बाद कई विद्यार्थियों को आगे की शिक्षा को जारी रखने में काफी ज्यादा समस्या का सामना करना पड़ा। इसी समस्या को निजात दिलाने हेतु भारत सरकार के द्वारा पीएम ई-विद्या योजना की शुरुआत की गईI इसके लिए एक आधिकारिक पोर्टल को भी लांच किया गया। पीएम ई-विद्या योजना के अंतर्गत डिजिटल एजुकेशन को बढ़ावा दिया गया है I इस योजना के द्वारा लांच किए गए पोर्टल में एजुकेशन चैनल, सामुदायिक रेडियो और स्वयं पोर्टल स्वयं प्रभा टीवी प्रतियोगिता परीक्षाओं के लिए ऑनलाइन कोचिंग आदि सुविधाओं को सम्मिलित किया गया है जो कि किसी भी छात्र के शिक्षा के हेतु पर्याप्त है।सरकार द्वारा शिक्षकों के लिये राष्ट्रीय डिजिटल माध्यम दीक्षा पोर्टल की शुरुआत की गई। दीक्षा पोर्टल की शुरुआत शिक्षक समुदाय को समाचार, किसी प्रकार की घोषणा, आकलन तथा शिक्षक प्रशिक्षण सामग्री उपलब्ध कराने के लिये की गई थी। इस पोर्टल पर शिक्षकों को ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों माध्यमों से प्रशिक्षण प्राप्त होता है। यह पोर्टल शिक्षकों को टीचर एजुकेशन इंस्टीट्यूट (Teacher Education Institutes- TEIs) में शामिल होने के उद्देश्य से शिक्षकों को स्वयं निर्देशित करने में मदद करता है। यह नियमित स्कूल पाठ्यक्रम के बाद, NCERT पाठ्यपुस्तकों और पाठों (lessons) तक पहुँच प्रदान करता है।
कोविड और शिक्षा
COVID-19 महामारी ने बच्चों के दैनिक जीवन को बाधित कर दिया है, इस महामारी के कारण सभी शिक्षण संस्थानों और परीक्षाओं को स्थगित करना पड़ा था तथा इसके कारण बहुत से बच्चे शिक्षा तंत्र से बाहर हो गए हैं। बच्चों की पढ़ाई बाधित न हो यह सुनिश्चित करने के लिये स्कूलों द्वारा पढ़ाई को ऑनलाइन मोड पर स्थानांतरित कर दिया गया था।ह्यूमन राइट्स वॉच ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि सरकारों को कोविड-19 महामारी से हुए अभूतपूर्व व्यवधान के कारण बच्चों की शिक्षा के नुकसान की भरपाई के लिए तुरंत कदम उठाने चाहिए। ह्यूमन राइट्स वॉच ने अप्रैल 2020 से अप्रैल 2021 के बीच 60 देशों में 470 से अधिक छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों का साक्षात्कार किया।मई 2021 तक, 26 देशों में स्कूल पूरी तरह से बंद थे और 55 देशों में स्कूल केवल आंशिक रूप से – या तो कुछ स्थानों में या केवल कुछ कक्षाओं के लिए – खुले थे। यूनेस्को के अनुसार, दुनिया भर में स्कूल जाने वाले करीब 90 फीसदी बच्चों की शिक्षा महामारी में बाधित हुई है। यहां तक कि जो छात्र अपनी कक्षाओं में लौट आए हैं या लौट आएंगे, साक्ष्य बताते हैं कि आने वाले कई वर्षों तक वे महामारी के दौरान पढ़ाई में हुए नुकसान के प्रभावों को महसूस करते रहेंगे।कम आय वाले परिवारों के बच्चों के ऑनलाइन पढ़ाई से वंचित होने के अधिक आसार थे क्योंकि वे पर्याप्त डिवाइस या इंटरनेट नहीं खरीद सकते थे। ऐतिहासिक रूप से कम संसाधनों वाले स्कूलों ने, जिनके छात्र पहले से ही शिक्षा संबंधी बड़ी बाधाओं का सामना कर रहे थे, ने डिजिटल सीमाबद्धताओं के समक्ष अपने छात्रों को पढ़ाने में विशेष कठिनाइयों का सामना किया है। शिक्षा प्रणाली अक्सर छात्रों और शिक्षकों के लिए डिजिटल साक्षरता प्रशिक्षण प्रदान करने में विफल रही है जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि छात्र और शिक्षक इन तकनीकों का सुरक्षित और आत्मविश्वास के साथ उपयोग कर सकें।कोविड के समय भारत में ऑनलाइन शिक्षा को सक्षम करने के लिये कई पहलों की शुरुआत की गई। ई-पीजी पाठशाला केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की एक पहल है जिसका उद्देश्य अध्ययन के लिये ई-सामग्री प्रदान करना है।स्वयं (SWAYAM) ऑनलाइन पाठ्यक्रमों के लिये एक एकीकृत मंच प्रदान करता है। प्रौद्योगिकी के लिये राष्ट्रीय शैक्षिक गठबंधन (NEAT) योजना का उद्देश्य कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence) की सहायता से छात्र की व्यक्तिगत आवश्यकताओं के अनुरूप सीखने की प्रक्रिया की अधिक अनुकूलित प्रणाली को विकसित करना है।ऐसी अन्य पहलों में शामिल हैं-‘नेशनल प्रोजेक्ट ऑन टेक्नोलॉजी एनहांसमेंट लर्निंग’ (NPTEL), ‘नेशनल नॉलेज नेटवर्क’ (NKN) और ‘नेशनल एकेडमिक डिपॉजिटरी’ (NAD) आदि।
डिजिटल डिवाइड को खत्म करना जरूरी
डिजिटल डिवाइड इंटरनेट और संचार प्रौद्योगिकियों के उपयोग और प्रभाव के संबंध में एक आर्थिक और सामाजिक असमानता है। यह आम तौर पर इंटरनेट और संचार प्रौद्योगिकियों के उपयोग को लेकर विभिन्न सामाजिक, आर्थिक स्तरों या अन्य जनसांख्यिकीय श्रेणियों में व्यक्तियों, घरों, व्यवसायों या भौगोलिक क्षेत्रों के बीच असमानता का उल्लेख करता है। दुनिया के विभिन्न देशों या क्षेत्रों के बीच विभाजन को वैश्विक डिजिटल विभाजन के रूप में जाना जाता है, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विकासशील और विकसित देशों के बीच तकनीकी विभेद का उल्लेख करता है।पीएम नरेंद्र मोदी ने भी अपने भाषण में कहा है कि भारत की जी 20 अध्यक्षता विशेष रूप से विकासशील देशों में डिजिटल अंतर को पाटने और डिजिटल प्रौद्योगिकियों और परिवर्तन से अधिक लाभ सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करेगी।
केंद्र सरकार के इस प्रयास से विकास की नई इबारत लिखेगा पूर्वोत्तर भारत
केंद्र सरकार के लगातार प्रयासों से पूर्वोत्तर भारत अपने विकास की नई इबारत लिखने को तैयार है। पीएम मोदी के नेतृत्व में पिछले आठ साल में क्षेत्रीय परिषदों की बैठकों में पूर्वोत्तर के विकास के लिए तकरीबन एक हजार से ज्यादा मुद्दों पर विचार-विमर्श किया गया है और इनमें से 93 प्रतिशत का समाधान भी हुआ है। यह अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है। क्षेत्रीय परिषद की बैठकों के आयोजन में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है और इसके परिणाम अब जमीनी स्तर पर नजर भी आने लगे हैं। इसमें एक और बड़ी बात यह है कि यह सब संभव तब हो पाया है जब यह राज्य सरकारों, केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों के बीच बेहतर सहयोग संभव हुआ। इसमें अंतरराज्यीय परिषदों के सचिवालयों ने सक्रिय भूमिका निभाई है।‘सेवन सिस्टर्स’ कहलाने वाले पूर्वोत्तर भारत के इन राज्यों में अब विकास ने रफ्तार भरी है। वर्तमान सरकार के सांसदों और नीति निर्माताओं का अब इन राज्यों पर विशेष फोकस है। गौरतलब हो, जब स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी इस क्षेत्र में एक रात बिताने वाले पहले प्रधानमंत्री बने थे, तो उनका कार्यकाल यहां कई पहलों से युक्त था। इसके पीछे अटल जी का उद्देश्य बुनियादी ढांचे और प्रौद्योगिकी के माध्यम से उत्तर पूर्वी भारत को जोड़ना था। इसके लिए एक अलग मंत्रालय की अवधारणा से लेकर उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के लिए धन हेतु नॉन-लैप्सेबल पूल, सिक्किम को उत्तर-पूर्वी परिषद के सदस्य के रूप में शामिल करना और पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास के लिए एक समर्पित विभाग की आवश्यकता थी।पीएम मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनने के बाद, अर्थव्यवस्था, बुनियादी ढांचे, रोजगार, उद्योग और संस्कृति सहित विकास के विभिन्न आयामों में पूर्वोत्तर भारत की ओर नीति निर्माताओं का ध्यान गया। इसी परिप्रेक्ष्य में अपने कार्यकाल के दौरान, पीएम मोदी पिछले 8 वर्षों में 50 से भी ज्यादा बार इस क्षेत्र का दौरा कर चुके हैं। आइए अब विस्तार से जानते हैं, 2014 के बाद से पूर्वोत्तर भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास की तस्वीर को बदलने वाले तमाम अहम कदमों में के बारे में-
केंद्र सरकार ने योजनाओं को जारी रखने की दी मंजूरी
आज पूर्वोत्तर के विकास में केंद्र की तमाम योजनाएं चल रही हैं। हाल ही में केंद्र सरकार ने कई विकास योजनाओं को जारी रखने की मंजूरी भी दे दी है। ऐसे में चाहे कुछ भी हो जाए अब पूर्वोत्तर के विकास का पहिया नहीं रुकने वाला। जी हां, केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने 15वें वित्त आयोग की शेष अवधि (साल 2022-23 से 2025-26 तक ) के लिए कुल 12,882.2 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (डोनियर) की योजनाओं को जारी रखने की मंजूरी दी है। इसके तहत पूरे पूर्वोत्तर में जारी तमाम विकास कार्यों को आगे बढ़ाने का महत्वपूर्ण कार्य किया जाएगा। आत्मनिर्भर भारत अभियान के पांच स्तंभों, अर्थात् अर्थव्यवस्था, अवसंरचना, प्रणाली, जीवंत जनसांख्यिकी और मांग, को इसके माध्यम से बढ़ावा मिलेगा।
12882.2 करोड़ रुपए से जारी रहेंगें विकास कार्य
पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास के लिए 12,882 करोड़ रुपए विभिन्न मंत्रालयों की परियोजनाओं पर खर्च किए जाएंगे। इसके तहत पूर्वोत्तर राज्यों में रेलवे, हवाई कनेक्टिविटी, सड़क निर्माण, कृषि और टूरिज्म की 202 से अधिक परियोजनाओं पर काम चल रहा है। स्वीकृत किए गए इस फंड से पूर्वोत्तर क्षेत्र के इन विकास कार्यों को और अधिक गति प्राप्त होगी। पीएम मोदी का विजन है कि देश का ऐसा कोई भी कोना न हो जो विकास से पीछे छूटे।
कृषि व पर्यटन क्षेत्र के विकास के लिए टास्क फोर्स का गठन
केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर भारत में कृषि क्षेत्र के विकास के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया है, जिसमें डोनियर और राज्यों के कृषि अधिकारी शामिल किए गए हैं। इसी तरह पर्यटन के विकास के लिए भी एक टास्क फोर्स का गठन किया गया है।
विकास कार्यों के लिए 4 लाख करोड़ रुपए हुए आवंटित
उल्लेखनीय है कि 2014 के बाद से, इस क्षेत्र के लिए बजटीय आवंटन में भारी वृद्धि देखी गई है। 2014 से, इस क्षेत्र के लिए 4 लाख करोड़ रुपए से अधिक धनराशि आवंटित की गई है। इन राज्यों में बेहतर कनेक्टिविटी के लिए यहां 17 एयरपोर्ट बनाए जा चुके हैं। पहले यहां केवल 9 एयरपोर्ट हुआ करते थे। इसी से विकास की धारा के तेज बहाव का अंदाजा लगाया जा सकता है। वहीं पूर्वोत्तर राज्यों में निजी भागीदारी बढ़ाने के लिए निवेशकों को आकर्षित करने पर खास ध्यान दिया जा रहा है।
निवेश के लिए बनेगा बेहतर स्थान
ऐसे में पूर्वोत्तर राज्य आने वाले समय में निवेश के लिए बेहतर स्थान होने वाला है।एमडीओएनईआर योजनाओं के तहत पिछले 04 वर्षों में वास्तविक व्यय 7534.46 करोड़ रुपए रहा है, जबकि, 2025-26 तक अगले चार वर्षों में व्यय के लिए उपलब्ध निधि 19482.20 करोड़ रुपए (लगभग 2.60 गुना) है। क्षेत्र में अवसंरचना विकास के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास किए गए हैं। कनेक्टिविटी में सुधार मुख्य फोकस रहा है।
गति शक्ति योजना से पूर्वोत्तर के विकास को मिली गति
गौरतलब हो, पीएम मोदी की गति शक्ति योजना में पूर्वोत्तर राज्यों की प्रमुख हिस्सेदारी रही है। मल्टी-मोडल कनेक्टिविटी के लिए पीएम गति शक्ति-राष्ट्रीय मास्टर प्लान का शुभारंभ किया गया था जिसका भरपूर लाभ पूर्वोत्तर भारत को मिल रहा है। जी हां, दरअसल,‘पीएम गति शक्ति’ मिशन भारत सरकार की 100 लाख करोड़ रुपए की योजना है। जिसका उद्देश्य इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में रिफॉर्म लाना है। पीएम गति शक्ति एक डिजिटल मंच है जिसके तहत सरकार के 16 मंत्रालयों को एक जगह लाया गया है।ये मंत्रालय सरकार के विभिन्न इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में तालमेल बैठाकर उन्हें पूरा करने का कार्य करते हैं। इसमें रेलवे, सड़क एवं राजमार्ग, पेट्रोलियम एवं गैस, टेलीकॉम, पावर, एविएशन और शिपिंग जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय शामिल हैं। पूर्वोत्तर भारत में इसी के आधार पर विकास कार्य जारी हैं। इसके तहत भारतीय लोग, भारतीय उद्योग, भारतीय व्यवसाय, भारतीय विनिर्माता, भारतीय किसान गति शक्ति के इस महाअभियान के केंद्र में हैं।
कनेक्टिविटी में हुआ सुधार
पूर्वोत्तर भारत की कनेक्टिविटी की समस्या से दूर होने में मदद मिल सकी। पूर्वोत्तर भारत के समक्ष कनेक्टिविटी की चुनौती ही विशेष रूप से बहुत बड़ी समस्या रही है। लंबे समय से भारत और दुनिया के बीच पूर्व की ओर जुड़ाव का पुल रहा है। सदियों से, इसके प्राकृतिक आकर्षण ने न केवल दक्षिण-पूर्व एशिया में बल्कि कोरिया और जापान तक लोगों, माल, विचारों के आवागमन को आसान बनाया है। लेकिन कनेक्टिविटी के लिए साल 2014 से पहले यहां कुछ खास प्रयास नहीं किए गए, जिससे यह विघटन की और बढ़ता गया। 2014 के बाद से इसमें काफी बदलाव आया है। पीएम मोदी की गतिशक्ति योजना ने कनेक्टिविटी की समस्या का समाधान निकाला है।रेलवे कनेक्टिविटी में सुधार के लिए 2014 से अब तक 51,019 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं। 77,930 करोड़ रुपए की 19 नई परियोजनाएं मंजूर की गई हैं। वहीं सड़क संपर्क में सुधार के लिए, 1.05 लाख करोड़ रुपए की 375 परियोजनाएं का काम चल रहा है। सरकार अगले तीन साल में 209 परियोजनाओं के तहत 9,476 किलोमीटर सड़कों का निर्माण करेगी। इसके लिए केंद्र सरकार 1,06,004 करोड़ रुपए खर्च कर रही है।
वाम कट्टरपंथ पूर्वोत्तर क्षेत्र से लगभग खत्म
पूर्वोत्तर पहले अशांति, बम-विस्फोट की घटनाओं, बंद आदि के लिए जाना जाता था, लेकिन पिछले आठ वर्षों में पीएम मोदी के नेतृत्व में क्षेत्र में शांति स्थापित हुई है। उग्रवाद की घटनाओं में 74 प्रतिशत की कमी आई है, सुरक्षा बलों पर हमलों की घटनाओं में 60 प्रतिशत की कमी आई है और नागरिकों की मौत में 89 प्रतिशत की कमी दर्ज की गयी है। लगभग 8,000 युवाओं ने आत्मसमर्पण किया है तथा अपने और अपने परिवारों के लिए बेहतर भविष्य का स्वागत करते हुए मुख्यधारा में शामिल हो गए हैं।इसके अलावा, 2019 में त्रिपुरा के राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चे, 2020 में बीआरयू और बोडो समझौते और 2021 में कार्बी समझौते पर सहमति बनी। असम-मेघालय और असम-अरुणाचल सीमा विवाद भी लगभग समाप्त हो चुके हैं और शांति बहाली के साथ ही पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास के पथ पर अग्रसर हो गया है।
नॉर्थ ईस्ट गैस ग्रिड परियोजना पर काम जारी
फिलहाल, देश में नॉर्थ ईस्ट गैस ग्रिड (NEGG) परियोजना पर काम चल रहा है। 9,265 करोड़ रुपए की नॉर्थ ईस्ट गैस ग्रिड (NEGG) परियोजना पर काम चल रहा है, जिससे NER की अर्थव्यवस्था में सुधार होगा।
19 राज्य कैंसर संस्थान और 20 कैंसर देखभाल केंद्र स्वीकृत
वहीं कैंसर योजना के तृतीयक स्तर की देखभाल के सुदृढ़ीकरण के तहत 19 राज्य कैंसर संस्थान और 20 तृतीयक स्तर की देखभाल कैंसर केंद्र स्वीकृत किए गए हैं। इससे कैंसर मरीजों को इलाज के लिए पूर्वोत्तर में ही सारी सहुलियत उपलब्ध होगी।
बिजली के बुनियादी ढांचे को किया जा रहा मजबूत
पूर्वोत्तर क्षेत्र में विकास को बढ़ावा देने के लिए बिजली के बुनियादी ढांचे को मजबूत किया गया है। 2014-15 से, सरकार ने 37,092 करोड़ रुपये स्वीकृत किए हैं, जिनमें से अब तक 10,003 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं।
उच्च शिक्षा में कुल छात्र नामांकन में 29 प्रतिशत की वृद्धि
पिछले आठ वर्षों में, इस क्षेत्र में शिक्षा अवसंरचना में सुधार के लिए प्रयास किए गए हैं। 2014 से अब तक, सरकार ने पूर्वोत्तर में उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए 14,009 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। उच्च शिक्षा के लिए, 191 नए संस्थान स्थापित किए गए हैं। 2014 से स्थापित विश्वविद्यालयों की संख्या में 39 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 2014-15 से उच्च शिक्षा के केंद्रीय संस्थानों की स्थापना में 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। परिणामस्वरूप, उच्च शिक्षा में कुल छात्र नामांकन में 29 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
पूर्वोत्तर क्षेत्र में बनाए गए 18 राष्ट्रीय जलमार्ग
जलमार्ग, पूर्वोत्तर क्षेत्र के जीवन और संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार इस महत्वपूर्ण क्षेत्र को पूर्वोत्तर क्षेत्र में विकसित करने के सभी प्रयास कर रही है। 2014 से पहले पूर्वोत्तर क्षेत्र में केवल 1 राष्ट्रीय जलमार्ग था। अब पूर्वोत्तर क्षेत्र में 18 राष्ट्रीय जलमार्ग हैं। हाल ही में राष्ट्रीय जलमार्ग 2 और राष्ट्रीय जलमार्ग 16 के विकास के लिए 6000 करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए हैं।
4,525 गांवों में 4G कनेक्टिविटी को मंजूरी
दूरसंचार संपर्क में सुधार के लिए, 2014 से, 10 प्रतिशत जीबीएस के तहत 3466 करोड़ रुपये व्यय किए गए हैं। कैबिनेट ने पूर्वोत्तर के 4,525 गांवों में 4जी कनेक्टिविटी को भी मंजूरी दी है। केंद्र सरकार ने 2023 के अंत तक क्षेत्र में पूर्ण दूरसंचार संपर्क प्रदान करने के लिए 500 दिनों का लक्ष्य निर्धारित किया है।
NER की अर्थव्यवस्था में होगा सुधार
इन तमाम कार्यों को मद्देनजर रखते हुए कहा जा सकता है कि केंद्र सरकार ने पिछले वर्षों में पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्यों में आधारभूत ढांचा विकसित करने की दिशा में बहुत काम किया है और इस क्रम में अभी भी लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। इन तमाम कदमों से पूर्वोत्तर की अर्थव्यवस्था में अभूतपूर्व सुधार होगा। इसी के बलबूते आगामी समय में पूर्वोत्तर भारत नई इबारत लिखने जा रहा है। अब कोई इन्हें ‘राष्ट्र के उपेक्षित राज्यों’ के रूप में नहीं जानेगा क्योंकि केंद्र सरकार ने ‘लुक एंड एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ के तहत इनके विकास की बागडोर अपने हाथों में अच्छी तरह से संभाल ली है। इसी क्रम में पूर्वोत्तर भारत के लिए पिछले 8 साल में हुए विकास कार्य परिवर्तनकारी रहे हैं। इस दौरान पूर्वोत्तर भारत में वो कुछ हुआ, जिसका लंबे समय से इंतजार था।