
आर पी डब्लू न्यूज़/ब्यूरो रिपोर्ट
दिल्ली ,जनवरी 13:-भारत के G20 की अध्यक्षता ग्रहण करने से ‘ग्लोबल साउथ’ का महत्व और भी बढ़ा है। दरअसल, G20 की अध्यक्षता ग्रहण करने के साथ भारत ने “वैश्विक दक्षिणी देशों की आवाज” को और बुलंद करने का जिम्मा अपने कंधों पर संभाल लिया है। इसके लिए भारत की अगुवाई में हुआ ‘वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट’ बड़ा उदाहरण पेश करता है। गुरुवार को भारत की अगुआई में सम्पन्न हुए ग्लोबल साउथ समिट के दौरान उन तमाम मुद्दों पर चर्चा हुई जो ग्लोबल साउथ के विकास के लिए अहम हैं। इस समिट के जरिए भारत ने सभी विकासशील देशों को नई विश्व व्यवस्था बनाने के लिए एक दूसरे का समर्थन करने को कहा।
भारत के कंधों पर ‘ग्लोबल साउथ’ देशों की बड़ी जिम्मेदारी
उल्लेखनीय है कि पीएम मोदी के नेतृत्व में बीते कुछ साल में वैश्विक मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्त्व वर्चस्व काफी तेजी से बढ़ा है। भारत की अध्यक्षता में हो रहा G20 शिखर सम्मेलन इस बात का बड़ा सबूत है। जी हां, ये वही ग्रुप ऑफ ट्वेंटी (G20) है जिसमें 19 देश (अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, कोरिया गणराज्य, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्कि, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका) और यूरोपीय संघ शामिल हैं। इनमें से अधिकतर देश विकसित हैं।मोटे तौर पर देखा जाए तो G20 में ‘ग्लोबल नॉर्थ’ और ‘ग्लोबल साउथ’ दोनों ही गुटों की कंट्रीज शामिल हैं। लेकिन ग्लोबल नॉर्थ के देशों की संख्या अधिक होने के चलते अभी तक ग्लोबल साउथ की सुनवाई नहीं हुई। यह पहला मौका है जब भारत को G20 जैसे शक्तिशाली समूह का नेतृत्व सौंपा गया है। ऐसे में भारत ग्लोबल साउथ की आवाज बनकर विकासशील देशों की बात को इस मंच पर मजबूती से रख रहा है।
विकासशील देशों को चाहिए जरूरी सहयोग
इसी क्रम में गुरुवार को भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने ग्लोबल साउथ समिट के विदेश मंत्रियों के सत्र को संबोधित करते हुए बड़ी अहम बातें कही हैं। उन्होंने कहा दुनिया को विकासशील देशों की जरूरतों के प्रति संवेदनशील बनना होगा। इसके लिए ऋण के बोझ तले दबाने वाली परियोजनाओं की बजाए इन देशों को उनकी जरूरतों और विकास के लिए जरूरी सहयोग देना होगा।
ग्लोबल साउथ की जरूरतों और आकांक्षाओं को नहीं दिया जाता महत्व
विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने आगे कहा कि वर्तमान की विश्व व्यवस्था में ग्लोबल साउथ की जरूरतों और आकांक्षाओं को महत्व नहीं दिया जाता। कोविड, खाद्य व ऊर्जा सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, संघर्ष, ऋण संकट जैसे मुद्दों पर भेदभाव पूर्ण व्यवहार किया गया है। इसलिए भारत स्व-केंद्रित वैश्वीकरण की बजाए मानव-केंद्रित वैश्वीकरण चाहता है। भारत चाहता है कि सामाजिक परिवर्तन के लिए वैश्विक दक्षिण-नेतृत्व वाले नवाचारों को लागू किया जाए।
भारत के चलते बढ़ा ग्लोबल साउथ का महत्व
वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट को विदेश मंत्री ने विकासशील देशों के सरोकारों, दृष्टिकोणों और प्राथमिकताओं को साझा करने का एक मंच बताया और कहा कि भारत के G20 की अध्यक्षता ग्रहण करने से इसका महत्व और भी बढ़ जाता है।
विश्व स्तर पर ऐसा रहा है भारत का रिकॉर्ड
विदेश मंत्री ने कहा कि भारत का रिकॉर्ड बोलता है। 78 देशों में हमारी विकास परियोजनाएं मांग-संचालित, पारदर्शी, सशक्तिकरण उन्मुख, पर्यावरण के अनुकूल हैं और एक परामर्शी दृष्टिकोण पर निर्भर हैं। भारत सभी की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करता है।
विकेंद्रीकरण और वैश्वीकरण के जोखिम को कम करने की दिशा में किया जाएगा काम
उन्होंने आगे कहा कि हम विकेंद्रीकरण और वैश्वीकरण के जोखिम को कम करने की दिशा में काम करेंगे। इसमें अधिक राष्ट्रों के लिए अधिक अवसर, स्थानीयकरण को बढ़ावा देने की प्रबल इच्छा, कनेक्टिविटी में सुधार और आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आपूर्ति श्रृंखलाओं को फिर से कॉन्फिगर करना शामिल है।
भारत अपने अनुभवों और विशेषज्ञता को साझा करने के लिए तैयार
विदेश मंत्री ने कहा कि भारत अपने अनुभवों और विशेषज्ञता को साझा करने के लिए तैयार है। भारत सबके साथ मिलकर विकास यात्रा तय करने और शांति व समृद्धि के लिए एक स्वर में आवाज उठाने का पक्षधर है।