
आर पी डब्लू न्यूज़/ब्यूरो रिपोर्ट
-सीजेएम वर्षा जैन ने लिंगानुपात सुधार की दिशा में प्रशासन द्वारा उठाए गए कदमों की सराहना की
– वर्षा जैन बोली, बेटा-बेटी में भेदभाव की सोच पर अंकुश लगाने का प्रयास करें आमजन
– अब बस… जागरूकता मुहिम के तहत सीजेएम ने रखी बेबाक राय
रेवाड़ी, 12 मई:- रेवाड़ी जिला में लिंगानुपात सुधार की दिशा में प्रभावी कदम उठाए जा रहे हैं। शासन-प्रशासन के साथ ही आमजन की सक्रिय सहभागिता लिंगानुपात सुधार में रहे इसके लिए जन जागरूकता मुहिम को चलाते हुए लोगों की मानसिकता को बदलने का प्रयास किया जा रहा है। डीसी मोहम्मद इमरान रजा की सामाजिक सोच के तहत प्रशासन जन जागरूकता मुहिम में अपना दायित्व निभाते हुए विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिभावान महिलाओं के विचारों को आमजन तक पहुंचाकर सार्थक संदेश देते हुए बेटा-बेटी में भेदभाव की सोच पर अंकुश लगाने का प्रयास किया जा रहा है। शुक्रवार को प्रशासन की जनहितकारी सकारात्मक सोच के क्रियान्वयन में सक्रिय भागीदारी निभा रही मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी एवं जिला विधिक सेवा प्राधिकरण सचिव वर्षा जैन ने संकीर्ण मानसिकता से ऊपर उठकर बिना भेदभाव की सोच के साथ समाज को आगे बढ़ने की सलाह दी। उन्होंने खुशी जताई कि बेटियां आज किसी भी क्षेत्र में बेटों से पीछे नहीं हैं।
रूढ़िवादी सोच को बदलते हुए नया इतिहास लिख रही बेटियां : जैन
मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी वर्षा जैन ने कहा कि भारत ऋषि-मुनियों की भूमि है। पूरे विश्व भर में अपनी महान संस्कृति और पारंपरिक मूल्यों के लिए भारत अपना प्रभुत्व कायम किए हुए है। भारतवासी हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं पर इन सब के बावजूद भी हमारे यहां रूढ़िवादी प्रथाएं एवं परंपराए निरंतर चली आ रही है। आज भी हम जाति एवं लैंगिक भेदभाव से उभर नहीं पा रहे हैं या यूं कहें कि हम आज भी मानते हैं कि एक बेटा एक बेटी के मुकाबले ज्यादा प्रभावशाली है और जीवन को बेहतर बनाता है। यह भेदभाव हजारों वर्षों से यूं ही चला आ रहा है और हमारे मस्तिष्क में इस तरह बस चुका है कि हमें केवल यही अहसास है कि बेटा कुलदीपक होता है और हर मां की कोख से बेटे का जन्म लेना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि यदि बेटा पैदा नहीं हुआ तो वंश आगे नहीं बढ़ेगा और परिवार को आगे कौन चलाएगा। बदलते परिवेश के साथ हमें अपनी मानसिकता को बदलना होगा चूंकि आज समुद्र से आसमान तक बेटियां हर क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित करते हुए परिवार को गौरवान्वित कर रही हैं। रूढ़िवादी सोच को बदलते हुए बेटियां अब नया इतिहास लिख रही हैं। *बेटी को बोझ समझने वाले जागरूक हों, हर क्षेत्र में है बेटियों की अतुल्य पहचान सीजेएम वर्षा जैन ने कहा कि शिक्षा के आगमन से हालांकि भेदभाव कम जरूर हो रहा है पर मिटा नहीं है। आज भी गांवों में जहां बेटियों को शिक्षित नहीं किया जाता है बल्कि यह माना जाता है कि बेटियों को तो घर का चूल्हा चौका ही करना है। वह दूसरे घर जाकर उस वंश को आगे बढ़ाएंगी और उस परिवार को संवारेगी। इसके अलावा दूसरा कोई और किरदार उनके लिए सोचा ही नहीं गया है। इसके मद्देनजर जब कोख में बेटी का आगमन होता है तो अमूमन यह देखा गया है कि उस बेटी को कोख में ही मार दिया जाता है या फिर तुरंत पैदा होने के बाद। उन्होंने कहा कि महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपना परचम लहराया है। सुविधाओं के अभाव में भी वे निरंतर आगे बढ़ती हैं। अब समय बदल रहा है लड़कियां हर क्षेत्र में आगे हैं। उन्होंने कहा कि लड़कियां चाहे वह राजनीति क्षेत्र हो या फिर कोई प्रशासनिक क्षेत्र वे हर जगह अपना वर्चस्व कायम किए हुए हैं। आज हर विभाग में अपनी सेवाएं दे रही हैं चाहे वह पुलिस विभाग, न्यायिक सेवा, वकालत, रक्षा क्षेत्र हो। वे उन क्षेत्रों में भी आगे बढ़ रही हैं जहां उनके जाने की भी कल्पना नहीं की जा सकती थी।
कानून में महिलाओं के लिए हैं बेहतर प्रावधान : वर्षा सीजेएम वर्षा जैन ने कहा कि सरकार की ओर से महिलाओं के लिए विशेष कानून बनाए गए हैं, जिनके बाद अब भ्रूण हत्या, बेटी को न पढ़ाना, घरेलू हिंसा, शारीरिक शोषण करना, दहेज और दुष्कर्म आपराधिक श्रेणी में शामिल हुए हैं। हरियाणा सरकार ने प्रदेश में कई योजनाओं जैसे बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, आपकी बेटी हमारी बेटी, लाडली, सुकन्या समृद्धि आदि को बढ़ावा दिया है ताकि लोगों की मानसिकता को बदला जा सके और उनके मन में बेटियों के प्रति भी वही प्रेम रहे जो वह अपने बेटों के लिए महसूस करते हैं। यह समझना बहुत जरूरी है कि बेटियां बोझ नहीं बल्कि परिवार समाज एवं राष्ट्र का एक हिस्सा है।स्वयं को एक महिला के रूप में कैसे देखती हैं वर्षा जैन ने बातचीत के दौरान कहा कि मैं भी एक बेटी की मां हूं और गर्व के साथ कह सकती हूं कि बिटिया के जन्म के बाद मैं पूर्णता का अनुभव करती हूं और अपने आपको बहुत भाग्यशाली समझती हूं। एक बिटिया ही घर आंगन में खुशियां बिखेर सकती है। अपने प्रेम से माता-पिता और बाकी परिवार के सदस्यों के बीच में प्यार का संबंध बनाती है चाहे वह बड़ी होकर दूसरे घर जाए पर फिर भी अपने इस घर को कभी नहीं भूल पाती है और अपने माता-पिता के प्रति सभी संबंधों को, सभी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाती है। उन्होंने चिंतनीय विषय बताते हुए कहा कि अगर बेटे इतने ही काबिल होते तो हमारे वृद्धाश्रम में बुजुर्ग नहीं होते। हमें यह अधिकार है ही नहीं कि हम भ्रूण हत्या जैसे अमानवीय कृत्य करके इस संतुलन को बिगाड़े। एक मां की कोख में चाहे लडक़ा हो या लडक़ी वह ईश्वर का वरदान है ईश्वर का आशीर्वाद है । हमें ऐसे समाज का का सृजन करना है जहां एक माता को बेटी के पैदा होने के बाद घृणित नजरों से ना देखा जाए बल्कि उसको बधाई दी जाए कि उसने एक देवी को जन्म दिया है और साथ ही साथ उस नन्ही सी बालिका को भी यह महसूस कराया जाये कि उसने एक सभ्य समाज में जन्म लिया है जहां पर लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होता और सभी प्राणियों को समान रूप से देखा जाता हैं।