
आर पी डब्लू न्यूज/धर्मेंद्र अदलखा
देश के नामी पश्चिम बंगाल के साहित्यकार जितेन्द्र जितांशु से बातचीत
अलवर, 18 फरवरी:- कोलकता से अलवर में आकर मेवात क्षेत्र की परंपरा, साहित्य और बोली का अध्ययन कर रहे साहित्यकार और लेखक जितेन्द्र जितांशु कहते हैं कि मेवात की पहचान अपनी कुछ खासियत से भी है जिसे हम सामने लाने के लिए प्रयास कर रहे हैं।जितांशु का कहना है कि यदि हम देश के साहित्य सरोकार की बात करें तो मेवात को भूला नहीं सकते हैं। यहां के समृद्ध परंपराए भी देश को पता होनी चाहिए। यहां कुआ पूजन, चाक पूजन और भात भरना देश में बहुत कम जगह पर हैं। हम यहां के रीति रिवाजों को देखकर उन्हें सुचीबद्ध करेंगे। मेवात का इतिहास हम सभी के सामने लाएंगे। यहां 21 फरवरी को एक सेमिनार होगा जिसमें मेवात के बारे में चर्चा की जाएगी। हमने भर्तृहरि के बारे में महेश कटारा की किताब काया के वन में, का बंगला में अनुवाद किया है। मेवात से हम समृद्ध इतिहास और साहित्य को विश्व के सामने लाने के लिए काम कर रहे हैं, इसके लिए हमारी टीम अलवर आई है। इसमें मेवात के प्रखर लोगों को आगे आना चाहिए।