March 16, 2025

देशभर में आज मनाया जा रहा मकर संक्रांति का पर्व

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आर पी डब्लू न्यूज़/ब्यूरो रिपोर्ट


दिल्ली ,जनवरी 14:-देशभर में आज शनिवार, 14 जनवरी 2023 को श्रद्धा और उल्लास के साथ मकर संक्रांति का पर्व मनाया जा रहा है। इस अवसर पर वाराणसी में श्रद्धालुओं ने गंगा नदी में पवित्र स्नान किया तो वहीं तीर्थराज प्रयाग में खुशनुमा मौसम के बीच मकर संक्रांति का स्नान शुरू हुआ। वैसे संक्रांति का पुण्यकाल रविवार को बताया जा रहा है। इस संबंध में कुछ कर्मकाण्ड प्रशिक्षकों का कहना है कि सूर्य का मकर राशि में प्रवेश आज दोपहर 2 बजकर 40 मिनट पर होगा और रविवार को पूरे दिन रहेगा। ऐसे में संक्रांति का पुण्यकाल कल शाम तक रहेगा।वहीं कुछ ज्योतिषाचार्यों का कहना है शनिवार की रात्रि 8:43 बजे से मकर राशि में सूर्य देव के प्रवेश करने से इस पर्व का प्रारंभ होगा। इसलिए रविवार को मकर संक्रांति का पर्व मनाना बहुत शुभ रहेगा। इस दिन स्नान, दान और पूजा पाठ के लिए पुण्य काल सुबह 7 बजे शुरू होगा जो कि शाम 6 बजे तक रहेगा। त्योहारों की तिथि तय करने वाले ग्रंथ धर्मसिंधु और निर्णय सिंधु में भी इस बात का जिक्र है कि सूर्यास्त होने के बाद सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तो अगले दिन पर्व मनाते हुए स्नान, दान और पूजा करनी चाहिए। इस साल ऐसी स्थिति बन रही है। 14 जनवरी की शाम तक सूर्य देव धनु राशि में रहेंगे। तब तक खरमास रहेगा। इसके बाद 15 जनवरी से खरमास समाप्ति के साथ सभी तरह के शुभ मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाएंगे।

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अलग-अलग हिस्सों में त्योहार के अलग-अलग नाम

बता दें मकर संक्रांति का त्योहार पूर देश में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। उत्तर भारत में इसे ‘खिचड़ी’, दक्षिण भारत में ‘पोंगल’ के रूप में मनाते है। वहीं असम में इसे ‘बिहू’ व पंजाब मे ‘लोहड़ी’ के रूप में मनाते हैं। सब जगह अपनी-अपनी परम्पराएं हैं। लोग अपनी परम्परा से इसे मनाते हैं। गुजरात व राजस्थान में इस दिन पतंग उड़ाई जाती है। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ मंदिर में नेपाल नरेश की ओर से खिचड़ी चढ़ाई जाती है।

PM मोदी ने ट्वीट कर देशवासियों को दी बधाई

वहीं इस मौके पर पीएम मोदी ने देशवासियों को भोगी और उत्तरायण के त्योहारों की बधाई दी है। पीएम मोदी ने ट्वीट कर कहा, ‘भोगी की शुभकामनाएं। सभी की खुशी और कल्याण के लिए प्रार्थना।’ उन्होंने एक अन्य ट्वीट में देशवासियों को उत्तरायण की भी शुभकामनाएं दी और कहा कि हमारे जीवन में खुशियों की बहुतायत हो।बता दें कि भोगी त्योहार पोंगल के चार दिनों के पहले दिन कई दक्षिणी राज्यों में मनाए जाने वाले महत्वपूर्ण फसल उत्सवों में से एक है। वहीं उत्तरायण भी फसल से जुड़ा त्योहार है। यह गुजरात में मनाए जाने वाले प्रमुख पतंगबाजी उत्सवों में से एक है।

क्या है महत्व ?

मकर संक्रांति पर्व का पूरे देश में विशेष महत्व है। यह साल की शुरुआत में पहला ऐसा पर्व है जो पूरे देश को एक सूत्र में पिरोने का कार्य करता है। इस पर्व के शुरू होने के साथ ही पूरा देश एक जुट नजर आता है। फिर चाहे इस पर्व के नाम अलग-अलग ही क्यों न हो।

दान का विशेष महत्व

हिन्दू धर्म में मकर संक्रांति का बहुत महत्व है। मकर संक्रांति पर गंगा स्नान के बाद दान का विशेष महत्व होता है। स्नान के बाद श्रद्धालु गंगाजल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दे घाट के किनारे ही पूजा-अर्चना कर यथाशक्ति तिल, गुड़, चावल व खिचड़ी इत्यादि का दान पुन कर रहे हैं। यह प्रक्रिया कल भी जारी रहेगी। मकर संक्रांति के उपलक्ष में पूरे देश में कई स्थानों पर जगह-जगह प्रसाद भी बंट रहा है।

भारतीयता के उत्तरायण होने का पर्व

सनातन धर्म शास्त्र और पंचांग के अनुसार वर्ष के सभी 12 महीनों में संक्रांति होती है, लेकिन सभी संक्रांति में मकर संक्रांति का खास महत्व होता है। प्राचीन काल से मान्यता है कि इस दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं। कहा जाता है कि इसी संक्रांति तिथि को भागीरथ अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए भागीरथी को लेकर गंगासागर पहुंचे थे। नवविहान की इस बेला में सूर्य का उत्तरायण होना भारतीयता का उत्तरायण होना है। सूर्य के उत्तरायण होने का अर्थ है सूर्य द्वारा मकर रेखा को संक्रांत करना तथा धनु से मकर तक पहुंचना।ज्योतिष विधा में मकर एक राशि है, जिसके स्वामी शनि हैं, शनि को सूर्य पुत्र कहा गया है। सूर्य भारत की आचार्य परंपरा के प्रतीक और तीव्र गति के देवता हैं, जबकि शनि मंद गति के देवता माने जाते हैं। इसलिए मकर संक्रांति को लेकर यह मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र से मिलने जाते हैं। शनि अंधकार, तम और मद्धिम गति के ग्रह हैं। सूर्य की रश्मियां बहुत देर से शनि पर पहुंचती हैं। इसलिए मकर का सूर्य पर पहुंचना ब्रह्मांड में सर्वत्र प्रकाश के पहुंचने और सौर परिवार के अंतिम ग्रह तक प्रकाश के प्रकाशित होने का प्रतीक है। भारत में इस दिन से दिन बड़ा शुरू होता है। भारत में दिन का बड़ा होना ही देवताओं का दिन होना है। वहीं उत्तरायण यानि पूर्व से उत्तर की ओर पूर्व एवं उत्तर का साथ होना है। पूर्व से उत्तर अर्थात पहले के प्रकाश को अतिक्रांत कर नया प्रकाश उत्पन्न करना है, यही ज्ञान का परिपक्व होना है। पूर्व और उत्तर मिलते हैं तो ईशान कोण बनता है। ईशान देवताओं की दिशा है, भारत में अरुणोदय ईशान से प्रशस्त माना जाता है।

खगोलीय घटना की दृष्टि से मकर संक्रांति

सौर परिवार के केंद्र सूर्य से उसकी परिधि शनि तक सबके प्रकाशित होने का पर्व है, जिसे समूचा भारत मनाता है, सभी साथ मिलकर मनाते हैं। इस दिन से खरमास का समापन भी होता है, खरमास यानि कंटीले दिन, जो खर और कुश की तरह चुभते हैं। उस खर और कुश सी शीत की चुभन से मुक्ति है यह पर्व। शीत से चुभन की मुक्ति का उल्लास स्नान के मेलों में उछाल मारता है। इस दिन सूर्य अपनी रश्मियों से प्रकाश और ऊर्जा को बांटते हैं। भारत का जन इस अवसर पर सर्वत्र दान देता है। कहीं चावल के मीठे पीठे तो कहीं धान की खीलों की लाई, तिल और गुड़ तो पूरे देश में प्रचलित हैं। इसलिए आज बड़ी संख्या में लोग आस्था की डुबकी लगाने घाटों पर पहुंचे हैं। देशभर में आज भी ऐसा ही आलम नजर आया। वाराणसी, प्रयागराज, हरिद्वार में लोगों ने गंगा में पवित्र स्नान किया।महाराष्ट्र में इस दिन तिल एवं गुड़ का हलवा बांटते समय कहा जाता है ”तिल, गुड़ ध्याह आणि गोड़ गोड़ बोला” अर्थात तिल, गुड़ खाओ और मीठा-मीठा बोलो। तमिलनाडु में इसे पोंगल के रूप में मनाते हैं, जिसमें पूरे परिवेश को कूड़े-करकट से मुक्त कर लक्ष्मी पूजन और पशुधन पूजन करके मिट्टी के बर्तनों में खीर पकाई जाती है। खीर पकाना और बांटना सात्विक नेह और पोषण का प्रतीक करण है। पोंगल खेती और बेटी की जो भारतीय संस्कृति है, उसको जीवन-व्यवहार में रूपांतरित करने का दिन है। इसलिए इस दिन बेटी और दामाद को बुलाकर उनका स्वागत-सत्कार किया जाता है। भोगासी बिहू में यह नृत्य और कला के साथ प्रकट होता है तो पोंगल में स्वच्छता, पवित्रता और सम्मान के रूप में। उत्तर भारत में लोहड़ी के रूप में ओज और नृत्य के साथ प्रसन्नता को नाच-गान से बांटने के रूप में आयोजित होता है तो गंगा-यमुना के किनारों पर खिचड़ी के दान और गांव-गांव सहभोज के आयोजन में लोकपर्व के रूप में आयोजित होता है।

भगवान सूर्य को क्यों समर्पित है ये दिन ?

सनातन धर्म में सभी त्योहार चन्द्रमा की गणना व तिथियों के अनुसार मनाए जाते हैं, वहीं मकर संक्रांति का त्योहार सूर्य पर आधारित पंचांग की गणना के आधार पर मनाया जाता है। सूर्य जिस दिन धनु राशि से निकलकर मकर में प्रवेश करते हैं उस दिन मकर संक्रांति मनाई जाती है। इसलिए यह दिन भगवान सूर्य को समर्पित है। मकर संक्रांति को उत्तरायण भी कहा जाता है जिसका अर्थ है कि सूर्य उत्तर की ओर बढ़ता है। उत्तरायण की शुरुआत के साथ ही ठंड का असर भी धीरे-धीरे कम होने लगता है। इसलिए यह दिन भगवान सूर्य को समर्पित है। इस दिन सवेरे ब्रह्म भोर में गंगा स्नान को बेहद पवित्र समझा जाता है।

मकर संक्रांति पर घुल रही तिल के लड्डू की मिठास

पूरे दो सालों तक कोरोना की वजह से त्योहारों की रौनक बाजारों से गायब थी लेकिन इस बार कोरोना की आहट के बावजूद हालात सामान्य ही नजर आ रहे हैं। लोग त्योहार मनाने के लिए खुलकर खरीदारी कर रहे हैं। दुकानदार भी अलग-अलग प्रकार के तिल पट्टी बेच रहे हैं। संक्रांति की पूर्व संध्या पर लोगों ने जमकर खरीदारी करते दिख रहे है। महिलाओं श्रृंगार सामग्री खरीद रही हैं। मकर संक्रांति पर्व पर तरह-तरह की पतंगों से भी बाजार सज गए हैं। युवाओं में पतंग डोर खरीदने का उत्साह देखा जा रहा है। कहते हैं कि मकर संक्रांति का त्योहार पतंगबाजी के लिए तो मशहूर है ही। साथ ही तिल के लड्डू और फीणी की मिठास के बिना ये अधूरा है। इसलिए इस बार खजूर और गुड़ से तैयार पट्टी और तिल के लड्डू भी लोगों को खूब भा रही है। दुकानदारों की मुस्कान बताती हैं कि इस बार उनकी खरीदारी भी हो रही है। खजूर के गुड़ से बनी बादाम की पट्टी के साथ बासमती धान का चूड़ा व अन्य तरह के खाने के उत्पाद भी बाजारों में बिक रहे हैं। इन पट्टियों का स्वाद लाजवाब है।

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