केंद्र सरकार के एथेनॉल स्ट्रैटेजी की दूरदर्शिता से गन्ना किसान खुशहाल

आर पी डब्लू न्यूज़/ब्यूरो रिपोर्ट

दिल्ली जनवरी 20:-गन्ना किसानों की सबसे बड़ी समस्या का समाधान तलाशने में भारत को बड़ी कामयाबी मिली है। गन्ना किसानों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से बीते 8 साल में केंद्र सरकार ने ऐसी नीतियां तैयार की हैं जिनका सकारात्मक परिणाम अब देखने को मिल रहा है। एक तरफ जहां देश में गन्ने की पैदावार लगातार बढ़ रही है, वहीं गन्ने से तैयार चीनी और ‘एथेनॉल’ का उत्पादन भी उम्मीद से अधिक तीव्र हुआ है। बीते 8 साल में चीनी का निर्यात भी दिनों-दिन बढ़ रहा है। इससे गन्ना किसानों की अच्छी कमाई हो रही है।
5,000 लाख मीट्रिक टन (LMT) से ज्यादा गन्ने की हुई पैदावार
चीनी क्षेत्र को आत्मनिर्भर रूप में विकसित करने की दिशा में केंद्र सरकार ने बीते 8 साल में दीर्घकालिक उपाय किए हैं। इनका परिणाम चीनी सत्र 2021-22 में सामने आया है। इस अवधि में भारत में 5,000 लाख मीट्रिक टन (LMT) से ज्यादा गन्ने की पैदावार हुई है। उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने गुरुवार को इसकी जानकारी देते हुए कहा कि एक रिकॉर्ड से अधिक चीनी सीजन 2021-22 के दौरान 5,000 लाख मीट्रिक टन (LMT) गन्ने का उत्पादन हुआ है। इसमें से लगभग 3,574 एलएमटी गन्ने की चीनी मिलों में पिराई हुई। इससे 394 लाख एमटी चीनी (सुक्रोज) का उत्पादन हुआ, जिसमें 36 लाख मीट्रिक टन (LMT) चीनी का इस्तेमाल इथेनॉल उत्पादन में किया गया और चीनी मिलों द्वारा 359 एलएमटी चीनी का उत्पादन किया गया।
एथेनॉल से घुल रही किसानों की जिंदगी में मिठास
2021-22 के दौरान ही चीनी मिलों और डिस्टिलरीज ने इथेनॉल की बिक्री कर बेहतरीन कमाई की है। बताया जाता है कि इस अवधि में एथेनॉल से करीब 20,000 करोड़ रुपए से ज्यादा का राजस्व अर्जित किया गया है। इससे गन्ना किसानों के दुखी चेहरे फिर से खिल उठे हैं। यानि उन्हें अब अधिक मुनाफा कमाने का मौका मिल रहा है। ज्ञात हो, एथेनॉल को गन्ने की फसल से तैयार किया जाता है। देश की कई चीनी मिलों में इसका उत्पादन भी हो रहा है। वहीं एथेनॉल के दाम बढ़ने से चीनी मिलों को राहत मिली है और इसका सीधा फायदा अब किसानों को पहुंच रहा है।ऐसे में कहा जा सकता है कि गन्ना किसानों की जिंदगी में सबसे अधिक मिठास घोलने का कार्य एथेनॉल ने किया है। यही कारण है कि बीते 8 साल के दौरान एथेनॉल की उत्पादन क्षमता में भी जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। यह 421 करोड़ लीटर से बढ़कर 867 करोड़ लीटर हो गई है।गौरतलब हो, जब केंद्र में पीएम मोदी के नेतृत्व में सरकार आई थी तब 1.58 प्रतिशत एथेनॉल ब्लेंडिंग होती थी जिसे बढ़ाकर केंद्र सरकार ने 2022 तक 10 प्रतिशत और 2025 तक 20 प्रतिशत तक ले जाने का लक्ष्य रखा। केवल इतना ही नहीं सरकार ने एथेनॉल के उपयोग को बढ़ाने का लगातार काम किया और वर्ष 2015 में एथेनॉल पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क को भी हटा दिया।सरकार समय-समय पर पेट्रोल के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल होने वाले एथेनॉल की कीमतों में भी इजाफा करती रही है। साल 2019 में केंद्रीय कैबिनेट ने एथेनॉल की कीमतों में इजाफा किया था। सरकार ने तब एथेनॉल की कीमतों में 30 पैसे लेकर 2 रुपए तक का इजाफा किया था। इसका फायदा भी सीधा किसानों को हुआ।
ईंधन में एथेनॉल के बढ़ते इस्तेमाल से भी गन्ना किसानों को फायदा
स्पष्ट है कि ऐथनॉल पर सरकार का खास फोकस इसलिए है क्योंकि सरकार गन्ना किसानों की समस्या के अलावा इसके इस्तेमाल से अन्य समस्याओं के समाधान भी खोज रही है। सरकार चाहती है कि भारत 2040 तक एथेनॉल की कुल वैश्विक मांग में 25 फीसदी योगदान दे और 2025 तक पेट्रोल में 20 फीसदी इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य प्राप्त करे। इसी दिशा में सरकार एथेनॉल पर जोर दे रही है। एथेनॉल एक तरह का ईंधन होता है और इसे पेट्रोल के साथ मिलाकर गाड़ियों में इस्तेमाल किया जाता है। सरकार एथेनॉल के उत्पादन और इसके इस्तेमाल को बढ़ावा देने पर इसलिए जोर दे रही है ताकि, पेट्रोल-डीजल पर निर्भरता कम हो सके। खास बात ये है कि इससे प्रदूषण भी कम होता है।भारत दुनिया में चीनी का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातकचीनी सत्र (अक्टूबर-सितंबर) 2021-22 में ही भारत दुनिया का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक और उपभोक्ता के साथ-साथ ब्राजील के बाद दुनिया में चीनी का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक भी बनकर उभरा है। भारत घरेलू खपत के लिए अपनी आवश्यकता को पूरा करते हुए चीनी का निरंतर निर्यात भी कर रहा है, जिससे हमारे राजकोषीय घाटे को कम करने में मदद मिली है। 4 चीनी सीजन; 2017-18, 2018-19, 2019-20 और 2020-21 के दौरान क्रमशः 6 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी), 38 एलएमटी, 59.60 एलएमटी और 70 एलएमटी चीनी का निर्यात किया गया है।

सरकार की इन नीतियों से बदल रही गन्ना किसानों की जिंदगी
केंद्र सरकार की सक्रिय नीतियों के कारण, गन्ने की खेती और चीनी उद्योग पिछले 8 वर्षों में एक लंबा सफर तय कर चुके हैं और अब आत्मनिर्भरता के स्तर पर पहुंच गए हैं। यह समय पर सरकारी हस्तक्षेप और चीनी उद्योग, राज्य सरकारों, केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों के साथ-साथ किसानों के साथ सहयोग का परिणाम है। हाल के वर्षों में चीनी क्षेत्र के लिए सरकार द्वारा किए गए मुख्य उपाय:
• गन्ने के एफआरपी को गन्ने के उत्पादकों के लिए एक गारंटीकृत मूल्य सुनिश्चित करने के लिए तय किया गया है।
• सरकार ने पिछले 8 वर्षों में FRP में 34 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि की है।
• सरकार ने चीनी के न्यूनतम बिक्री मूल्य (MSP) की संकल्पना को भी प्रस्तुत किया है ताकि चीनी की पूर्व-मिल कीमतों में गिरावट और गन्ना बकाया के संचय को रोकने के लिए (एमएसपी शुरुआत में 29 रुपए प्रति किलोग्राम 07 जून 2018 से प्रभावी रूप से लागू करने के लिए तय किया गया, संशोधित 31 रुपए प्रति किलोग्राम 14 फरवरी 2019 से प्रभावी।
• चीनी मिलों के निर्यात की सुविधा के लिए, बफर स्टॉक को बनाए रखने के लिए, इथेनॉल उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए और किसानों के बकाया भुगतान के लिए चीनी मिलों को 18,000 करोड़ रुपए से अधिक की वित्तीय सहायता।
• अधिशेष चीनी को इथेनॉल के उत्पादन में बदलकर चीनी मिलों की वित्तीय स्थितियों में सुधार किया। नतीजतन, वे गन्ने के बकायों का जल्दी से भुगतान करने में सक्षम हैं।
• चीनी के निर्यात और इथेनॉल के लिए डायवर्जन के कारण, चीनी क्षेत्र आत्मनिर्भर हो गया है और मिलों की तरलता में सुधार हेतु निर्यात व बफर के लिए बजटीय समर्थन करने की आवश्यकता नहीं है।
इसके अलावा, पिछले कुछ शुगर सीजनों के दौरान चीनी क्षेत्र के लिए किए गए विभिन्न अन्य उपायों के कारण, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ गन्ने की उच्च उपज देने वाली किस्मों के उपयोग की शुरुआत, ड्रिप सिंचाई प्रणाली को अपनाना, चीनी संयंत्र का आधुनिकीकरण और अन्य अनुसंधान एवं विकास गतिविधियां, गन्ने की खेती का क्षेत्र, गन्ने का उत्पादन, गन्ने की तराई, चीनी उत्पादन और इसका रिकवरी प्रतिशत व किसानों को भुगतान में काफी वृद्धि शामिल है।
किसानों की आय बढ़ाने के लिए सरकार प्रतिबद्ध
इन निर्णयों से 5 करोड़ गन्ना उत्पादक किसानों और उनके आश्रितों के साथ-साथ चीनी मिलों और संबंधित सहायक गतिविधियों में कार्यरत 5 लाख श्रमिकों को लाभ हो रहा है। 9 साल पहले, 2013-14 चीनी सीजन में एफआरपी सिर्फ 210 रुपए प्रति क्विंटल था और सिर्फ 2397 एलएमटी गन्ना चीनी मिलों द्वारा खरीदा गया था। किसानों को केवल गन्ने की बिक्री से चीनी मिलों से सिर्फ 51,000 करोड़ मिलते थे। हालांकि, पिछले 8 वर्षों में सरकार ने एफआरपी में 34 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि की है। चीनी सीजन 2021-22 में, चीनी मिलों द्वारा लगभग 3,530 लाख टन गन्ना खरीदा गया जिसकी कीमत 1,15,196 करोड़ रुपए रही, जो अब तक की सबसे अधिक है। ये तमाम कारण है जिनकी वजह से देश में गन्ने का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है।
भारत से चीनी का आयात करने वाले प्रमुख देश
आज पूरी दुनिया में भारत की चीनी की मिठास घुल रही है। इसके संकेत चीनी के निर्यात में हुई वृद्धि से मिलते हैं। भारत की चीनी का निर्यात वर्तमान समय में 10 गुना अधिक बढ़ चुका है। आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2013-14 के अप्रैल-जुलाई माह में भारत का चीनी का निर्यात 1,788 करोड़ रुपए का था जो वर्ष 2022-23 के अप्रैल-जुलाई की अवधि में 17,987 करोड़ रुपए हो चुका है।चीनी का आयात करने वाले प्रमुख देशों में इंडोनेशिया, अफगानिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, यूएई, मलेशिया और अफ्रीकी देश शामिल हैं।