जानें देश में क्यों है राष्ट्रपति के अभिभाषण की परंपरा और क्या है इसका इतिहास ?

आर पी डब्लू न्यूज़/ब्यूरो रिपोर्ट
दिल्ली , जनवरी 31:- आज वर्ष 2023 का पहला संसद सत्र राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के दोनों सदनों के सदस्यों को संबोधित करने के साथ शुरू हो गया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आज पहली बार सेंट्रल हॉल में दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित किया। राष्ट्रपति के अभिभाषण में आने वाले वर्ष के लिए सरकार की उपलब्धियों और भावी योजनाओं का ब्योरा दिया गया है। आइए जानते हैं कि देश में राष्ट्रपति के अभिभाषण की परंपरा क्यों है ? साथ ही इसका इतिहास क्या है?
अभिभाषण से ही शुरू होता है संसद सत्र
राष्ट्रपति के अभिभाषण से ही हर साल संसद के पहले सत्र यानी बजट सत्र की शुरुआत होती है। इसके अलावा हर लोक सभा आम चुनाव के बाद संसद के पहले सत्र में राष्ट्रपति का अभिभाषण होता है। संसद राष्ट्रपति, राज्यसभा और लोकसभा तीनों से मिलकर बनती है। राष्ट्रपति किसी भी सदन के सदस्य नहीं होते फिर भी राष्ट्रपति का अभिभाषण हमारी संसदीय प्रक्रिया का खास हिस्सा है।
संविधान में राष्ट्रपति के अभिभाषण का जिक्र
संविधान के अनुच्छेद 87 में ऐसी दो स्थितियों का उल्लेख किया गया है जब राष्ट्रपति द्वारा विशेष रूप से संसद के दोनों सदनों को संबोधित किया जाता है। प्रत्येक आम चुनाव के बाद पहले सत्र की शुरुआत होने पर जब निचले सदन की पहली बार बैठक होती है तब राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा और लोकसभा दोनों को संबोधित किया जाता है। इसके अलावा प्रत्येक वर्ष के पहले सत्र की शुरुआत में भी राष्ट्रपति द्वारा दोनों सदनों को संबोधित किया जाता है। किसी भी वर्ष में पहले सत्र को ही बजट सत्र कहा जाता है। इसलिए बजट सत्र के शुरू में संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में राष्ट्रपति का अभिभाषण होता है।
सरकार की नीतियों का विवरण
राष्ट्रपति के अभिभाषण में सरकार की नीतिगत प्राथमिकताओं और आने वाले वर्ष की योजनाओं का अनिवार्य रूप से उल्लेख होता है। अभिभाषण सरकार के एजेंडा और दिशा का व्यापक फ्रेमवर्क प्रदान करता है। इसमें महत्वपूर्ण आंतरिक और मौजूदा अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के संबंध में सरकार की ओर से अपनाई जाने वाली नीतियों की भी झलक होती है। अभिभाषण में उन विधायी कार्यों का भी उल्लेख होता है, जिन्हें उस वर्ष के दौरान होने वाले सत्रों में संसद में लाने का विचार होता है।
धन्यवाद प्रस्ताव पर एक नजर
संसद के दोनों सदनों के सदस्यों को राष्ट्रपति के अभिभाषण पर सवाल उठाने का अधिकार नहीं है। लेकिन, धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान सदस्य बहस कर सकते हैं। धन्यवाद प्रस्ताव (Motion of Thanks) संसदीय प्रक्रिया का बेहद ही महत्वपूर्ण हिस्सा है। राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद संसद के दोनों सदनों राज्यसभा और लोकसभा में कार्यवाही में तय तिथि को इससे जुड़ा धन्यवाद प्रस्ताव पेश किया जाता है। इसके बाद दोनों सदनों में इस पर चर्चा होती है और चर्चा के बाद धन्यवाद प्रस्ताव को दोनों सदनों से मंजूर किया जाता है। इस दौरान सदस्य ऐसे विषय नहीं उठा सकते, जिसका सीधा संबंध सरकार से नहीं है। इसके साथ ही बहस के दौरान सदस्य राष्ट्रपति का नाम भी नहीं ले सकते, क्योंकि अभिभाषण का प्रस्ताव सरकार तैयार करती है।
संसदीय प्रणाली ब्रिटेन से ली गई
राष्ट्रपति के अभिभाषण का प्रावधान हमारे संविधान में किया गया है। लेकिन सदन को संबोधित करने की यह परंपरा भारतीय नहीं, बल्कि ब्रिटेन से ली गई है। क्योंकि ब्रिटेन में सत्र की शुरुआत से पहले उसे किंग या क्वीन संबोधित करती थीं, इसलिए भारत में भी ऐसा ही होने लगा। इसके लिए संविधान में व्यवस्था की गई। आजादी के बाद साल 1950 में जब संविधान लागू हुआ तब साल में संसद के तीन सत्र की व्यवस्था की गई। उस दौरान राष्ट्रपति को हर सत्र को संबोधित करना होता था, लेकिन बाद में इसमें संशोधन किया गया। 1951 में हुए पहले संविधान संशोधन के तहत ये प्रावधान किया गया कि राष्ट्रपति का अभिभाषण लोकसभा के लिए प्रत्येक आम चुनाव के बाद होने वाले प्रथम सत्र के शुरुआत में और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र (बजट सत्र) के शुरू में ही होगा।