आर पी डब्लू न्यूज़/ प्रीति धारा ,
पंचकुला 26 सितम्बर:-
” माँ “
सुंदर धरातल के अंगिनत अजनबी चेहरो के मध्य , ईश्वर की एक खूबसूरत संरचना है माँ ।
क्षत विक्षत तन मन को,अमर आत्मा की ज्योत को बचाने के लिए सृष्टि की बेहद अनमोल रतन है माँ
दुनिया की उल्लाहन से बिखरती बचपन को अपने आँचल में समेटने को बैठी एक सुंदर सी मूरत है माँ
समाज के तानो बानो से लिपटी, थकाहारा ज़िंदगी के मध्य एक खूबसूरत सा लम्हा है माँ
दर्द के अथाह समंदर में, छुपी हुई ग़म के अंधकार में चमकती हुई रोशनी है माँ
तपती जलती रेत में, उबड़ खाबड़ रास्तो में,थकती समेटते शरीर को, अबिरल अपने आँचल में पोछती छुपाती बरफ़ सी ठंडी वो साया है माँ
हर पल में सिद्दत सी छुपी बैठी ये ज़िंदगी मे, जब अपना साया भी साथ छोड़ दे, जो भीगी पलको में भी हस के अपनी गोद में छुपा लेती है । वो है माँ
होली के रंगत में ,दीपावली की रोशनी व मिठास में छुपी हुई है माँ
हर तीज त्योहार में, हर साज सृंगार में, हसती हुई चेहरो से आलिंगन की हाथ बढ़ाये ,नज़र बिछाये राह ताकती है माँ
बिन स्वार्थ ढेरो आशीर्वाद देती, काल की गोद से भी वापस लाने की माद्दा रखती है माँ
कैसे शब्दो से ब्याख्या करू उस माँ को, सच मे ईश्वर की एक खूबसूरत स्वरचना है माँ ।
प्रीति धारा ,लेखिका व समाजसेविका