October 20, 2024

पूर्व डिप्टी सीएम चन्द्रमोहन जी ने तीर्थस्थल स्वयंभू दो शिवलिंग टपकेश्वर महादेव श्री गुरु द्रोणाचार्य जी की तपस्थली द्रोण गुफा में जल चढ़ाया व पुजा अर्चना की

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आर पी डब्लू न्यूज़/प्रीति धारा


जानें, टपकेश्वर मंदिर का हैरान करने वाला सच : चन्द्रमोहन

पंचकुला, 23 अप्रैल:- टपकेश्वर महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर देहरादून शहर से 6.5 किमी दूर स्थित है। गढ़ी कैंट छावनी क्षेत्र में तमसा नदी के तट पर स्थित है।शिव लिंग एक प्राकृतिक गुफा के भीतर स्थित है जिसे द्रोण गुफा के नाम से जाना जाता है। टपकेश्वर महादेव मंदिर में दो शिव लिंग हैं, जिनमें से दोनों को स्वयं प्रकट माना जाता है। आस-पास में संतोषी माँ और श्री हनुमान के लिए मंदिर हैं

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शिवलिंग पर लगातार पानी की बूंदें गिरने के कारण इसका नाम ‘टपकेश्वर’ पड़ा। लगातार गुफा की छत से पानी की बूंदें शिव लिंग के ऊपर गिरती हैं। यह पानी अंततः भूमिगत हो जाता है और मंदिर के पास एक धारा के रूप में फिर से प्रकट होता है।

महाभारत के पांडवों और कौरवों के सम्मानित शिक्षक गुरु द्रोणाचार्य के तप से प्रसन्न होकर ही भगवान शिव ने उन्हें इस स्थान पर दर्शन दिए थे और गुरु द्रोण के अनुरोध पर ही भगवान शिव जगत कल्याण लिंग के रूप में यहां स्थापित हो गए।

मान्यता यह भी है कि अश्वत्थामा को यहीं भगवान शिव से अमरता का वरदान मिला। उनकी गुफा भी यहीं है जहां उनकी एक प्रतिमा भी विराजमान है।

गुरु द्रोणाचार्य ने इस गुफ़ा में शिव की पूजा अर्चना की। जिससे शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। जिसके बाद गुरु द्रोणाचार्य के घर में अश्वत्थामा का जन्म हुआ। कहा जाता हैं कि जब अश्वत्थामा ने अपनी माँ कृपी से दूध पिने की इच्छा जाहिर की तो उनकी यह इच्छा पूरी ना हों सकी। ( क्योंकि द्रोणाचार्य गाय के दूध का खर्च नहीं उठा सकते थे) जिस पर अश्वत्थामा ने मंदिर की गुफा में छह माह तक एक पांव पर खड़े होकर भगवान शिव की तपस्या की। जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और मन चाहा वरदान मांगने के लिए कहा जिस पर अश्वत्थामा ने उनसे दूध मांगा।

भगवान ने उनकी तपस्या से प्रश्नन होकर शिवलिंग के ऊपर स्थित चट्टान में गऊ थन बना दिए और दूध की धारा बहने लगी। इसी कारण से भगवान शिव का नाम दूधेश्वर पड़ गया। कलियुग में धीरे धीरे दूध की यह धारा जल में परिवर्तित हो गई, जो आज भी निरंतर शिवलिंग पर गिर रही है। इस कारण इस स्थान का नाम टपकेश्वर महादेव पड़ गया। इसके साथ हीं मान्यता यह भी हैं कि महादेव ने यहीं पर देवताओं को देवेश्वर के रूप में भी दर्शन दिए थे।
पूरा सावन महीना यहां मेले का माहौल बना रहता है।साथ में हेमंत किगरं, संदीप जलौली व अन्य।

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