समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं पर हो रही कार्यवाही के विरोध में महिला संगठनों ने किया प्रदर्शन
आर पी डब्लू न्यूज़/राजीव मेहता
यमुनानगर, 27 अप्रैल:- सुप्रीम कोर्ट से समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं पर हो रही कार्यवाही के विरोध में गुरुवार को लघु सचिवालय के बाहर सामाजिक और धार्मिक महिला संगठनों की कार्यकर्ताओं ने बड़ी संख्या में इकठ्ठा होकर प्रदर्शन किया। और जिला उपायुक्त के माध्यम से राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपा। इस मौके पर अग्रवाल महिला सभा की अध्यक्षा मनीषा अग्रवाल ने कहा कि समलैंगिक विवाह को लेकर जल्द ही सुप्रीम कोर्ट का निर्णय और केंद्र सरकार का फैसला आने वाला है। जिसमें समलैंगिक विवाह की अनुमति दी जा सकती है। इसी के खिलाफ आज सभी सामाजिक, धार्मिक महिला संगठनों की महिलाएं सड़कों पर हैं। उन्होंने कहा कि समलैंगिक विवाह किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। प्रकृति ने जो नियम बनाए है यह उसके खिलाफ है और हमारे देश की संस्कृति के विरुद्ध है। उन्होंने कहा कि यह भविष्य में युवा पीढ़ी को भारी नुकसान वाला साबित होने वाला है। इसको लेकर पूरे भारत में प्रदर्शन किए जा रहे हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अपील की कि इस तरह के विवाह की अनुमति न दी जाए। यह किसी भी दृष्टि से सही व उचित नहीं है । महिला संगठनों के प्रतिनिधियों का कहना है कि देश की संस्कृति व प्राकृतिक नियम इससे बुरी तरह प्रभावित होंगे। इसलिए इसे किसी भी स्थिति में लागू नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि विवाह एक मानवीय संबंधों की मान्यता पर आधारित है और अनिवार्य रूप से विधायी है। उन्होंने कहा कि न्यायालय विवाह नामक संस्था के मूलरूप को ना तो नष्ट कर सकता है और ना ही नया स्वरूप बना सकता है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में विवाह का सभ्यतागत महत्व है। लेकिन अब स्वतंत्र भारत की संस्कृति पर पाश्चात्य देशों के विचारों, दर्शनों और प्रथाओं का असर पड़ता दिख रहा है। उन्होंने कहा कि इस विषय पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिखाई जा रही आतुरता के कारण समाज में गहन पीड़ा हो रही है। एक काल्पनिक मुद्दे पर न्यायालय के समय और बुनियादी ढांचे को नष्ट किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हमारी मांग है कि उक्त विषय पर समाज के सभी हितकारी संगठनों से परामर्श करने के कदम उठाए जाए और समलैंगिक विवाह न्याय पालिका द्वारा वैध घोषित ना किए जाए। क्योंकि उक्त विषय पूर्ण रूप से विधायिका के क्षेत्राधिकार में नहीं आता है। उन्होंने कहा कि शताब्दियों से केवल जैविक पुरुष और जैविक महिला के मध्य विवाह को ही मान्यता दी गई है। विवाह की संस्था केवल दो विषम लैंगिकों का मिलन है और मानव जाति की उन्नति है। उन्होंने कहा कि विवाह को विभिन्न नियमों, अधिनियमों लेखों और लिपियों में परिभाषित किया गया है। जो विवाह को दो अलग अलग लैंगिकों के पवित्र मिलन के रूप में मान्यता देती हैं। उन्होंने कहा कि समलैंगिक विवाह का हम पुरजोर विरोध करते है क्योंकि यह विज्ञान के अनुसार भी गलत और इससे संतान उत्पत्ति भी नही हो सकती है और भारतीय संस्कृति में यह एक सामाजिक पतन है। इस मौके पर डीएवी गर्ल्स कालेज की पूर्व प्राचार्या विभा गुप्ता सहित बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल रहीं।